हरियाणा के हिसार जिले का मिर्चपुर गांव आज भी उस भयावह घटना की यादों में जी रहा है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। 15 साल बीत चुके हैं, लेकिन जिन परिवारों का सब कुछ उस दिन तबाह हो गया था, वे आज भी न्याय और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोग इस गांव को अब “कांड वाला मिर्चपुर” कहने लगे हैं, क्योंकि यहां जो हुआ, वह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक त्रासदी थी।
क्या हुआ था मिर्चपुर में?
यह घटना 2010 की है, जब दलित समुदाय के एक परिवार का कुत्ता एक ऊंची जाति के व्यक्ति पर भौंक पड़ा। यह मामूली सी बात इतनी बढ़ गई कि गांव में जातीय हिंसा भड़क उठी। देखते ही देखते भीड़ ने दलित बस्ती को घेर लिया और आग लगा दी। इस भीषण आग में एक विकलांग युवक और उसकी बुजुर्ग बेटी जिंदा जल गए। गांव में दहशत का माहौल बन गया और कई परिवारों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा।
आज भी तंबू में रहने को मजबूर पीड़ित परिवार
इस घटना के 15 साल बाद भी कई पीड़ित परिवार अपने घरों में वापस नहीं लौट पाए हैं। वे आज भी तंबुओं और अस्थायी शरण स्थलों में रहने को मजबूर हैं। सरकार और प्रशासन ने पुनर्वास की कई घोषणाएं कीं, लेकिन हकीकत यह है कि अब भी कई परिवार अपनी जमीन और घर छोड़कर बेघर ही घूम रहे हैं।
गांव के लोग क्या कहते हैं?
मिर्चपुर के लोग इस घटना को आज भी भूल नहीं पाए हैं। दलित समुदाय के लोग कहते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ और आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला। दूसरी ओर, गांव के कुछ लोगों का मानना है कि घटना को इतना बड़ा बना दिया गया, जिससे पूरे गांव की छवि खराब हो गई।
न्याय की लड़ाई जारी
इस कांड में कई आरोपियों को सजा भी हुई, लेकिन पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्हें पूरी तरह से न्याय नहीं मिला। कई परिवार आज भी दिल्ली और अन्य जगहों पर शरण लिए हुए हैं, क्योंकि वे अब भी गांव लौटने से डरते हैं।
15 साल बाद भी मिर्चपुर सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि एक ऐसी याद बन गया है, जो सामाजिक अन्याय और जातीय संघर्ष की गवाही देता है।